Madhu varma

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लेखनी कविता - डरता हूँ कामयाबी-ए-तकदीर देखकर - फ़िराक़ गोरखपुरी

डरता हूँ कामयाबी-ए-तकदीर देखकर / फ़िराक़ गोरखपुरी

डरता हूँ कामियाबी-ए-तकदीर१ देखकर.
यानी सितमज़रीफ़ी-ए-तकदीर२ देखकर.
कालिब में३ रूह फूँक दी या ज़हर भर दिया.
मैं मर गया ह्यात की४ तासीर५ देखकर.
हैरां हुए न थे जो तसव्वुर में६ भी कभी.
तसवीर हो गये तेरी तसवीर देखकर.
ख्वाबे-अदम से७ जागते ही जी पे बन गई.
ज़हराबा-ए-ह्यात८ की तासीर देखकर.
ये भी हुआ है अपने तसव्वुर में होके मन्ह९.
मैं रह गया हूँ आपकी तसवीर देखकर.
सब मरहले ह्यात के तै करके अब 'फ़िराक'.
बैठा हुआ हूँ मौत में ताखीर१० देखकर.

१.भाग्य की सफलता २.भाग्य का मजाक ३.शरीर में ४.जीवन की ५.गुण
६.कल्पना में ७.अनस्तित्व से ८.जीवन रुपी विष की ९.मग्न १०.विलम्ब

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